दुनिया के सबसे खतरनाक एक्सपेरिमेंट्स | World's most dangerous experiments




क्या आप जानते हैं के एक बच्ची के Nose यानि नाक में 8 साल तक बन्दुक की गोली फांसी रही। और कहानी एक ऐसे अपराधी की जिसकी करोड़ों की सम्पत्तियाँ हर साल दीमक चाट जाती थीं। छोटे बच्चे अक्सर खेल-कूद में कुछ ऐसी गलती कर बैठते हैं, जिनके कारण उन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। कुछ ऐसा ही मामला अमेरिका से सामने आया है, जहां एक बच्चे की नाक में 8 साल तक बंदूक की गोली फंसी रही। गोली फंसे रहने के कारण उसे कोई स्मेल पता नहीं चलती थी। और इस चीज़ की खबर घर वालों को तब लगी जब उसकी नक् से गन्दगी बहार आने लगी और बहोत ज़्यादा स्मेल होने लगी। फिर डॉक्टरों ने बच्चे की नाक में इंडोस्कोप और टयूब कैमरा लगा कर देखा तो पता चला के उसकी नक् में टरबिनेट हाइपरट्रॉफी की समस्या हो गई है। आमतौर पर ऐसा मौसमी एलर्जी या साइनस के कारण होता है। ऐसे में डॉक्टरों ने बच्चे को एक स्प्रे और एंटीहिस्टामिन दवा देकर 4 हफ्ते बाद आने को कहा। लेकिन वो 1 साल बाद आये जब उनके कमरे में वो स्मेल काफी ज़्यादा बढ़ गई। घर वालों ने दोबारा डॉक्टर को दिखाया। डॉक्टरों ने सीटी स्कैन किया तो पता चला कि उसकी नाक की कैविटी में 9mm की गोली फांसी हुई है। ऐसे में बच्चे के नाक की सर्जरी की गई और उसकी नाक में मेटल की बीबी पैलेट फंसी हुई मिली।
जब डॉक्टरों ने पूछा तो घर वालों ने बताया के उसने बचपन में गोली दाल ली थी लेकिन घर वालों को इसकी कोई खास वजह पता नहीं चली जिसकी वजह से उन्होंने उसका ध्यान नहीं दिया। रिपोर्ट के मुताबिक, इस बच्चे की नाक से गोली को स्पॉट करना काफी मुश्किल था, क्योंकि समय के साथ पैलेट पूरी तरह नए टिश्यू से घिर गया था। डॉक्टरों ने बताया कि गोली को देखने के लिए पहले टिश्यू को ऑपेरशन के जरिए हटाया गया उसके बाद गोली को बाहर निकला गया। 


दुनियाभर में ऐसे कई अपराधी हुए, जो किसी खास वजहों से लोगों के बीच काफी मशहूर हो गए। कुछ इसी तरह का एक अपराधी था, जो अवैध ड्रग्स का कारोबार करता था। बता दें कि अवैध ड्रग्स का कारोबार इतना पुराना और बड़ा है, जिसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे ड्रग्स माफिया के बारे में बताएंगे, जिसने व्यापार में दिक्कत पैदा करने वाले हजारों लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। कहा जाता है कि इस माफिया के पास इतने पैसे थे कि हर साल करोड़ों रुपये चूहे कतर देते थे या फिर दीमक चाट जाते थे।
दरअसल, हम ड्रग्स माफिया पाब्लो एमिलियो के बारे में बात कर रहे हैं। अमेरिका के ड्रग एन्फोर्समेंट एडमिनिस्ट्रेशन के एजेंट रहे स्टीव मर्फी ने एक इंटरव्यू में ये कहा था कि पाब्लो एस्कोबार के पास पैसों का अथाह भंडार था। उसने अपने दुश्मनों को मारने के लिए करीब 16 अरब रुपये खर्च कर दिए थे। बता दें कि पूरी दुनिया में पाब्लो को किंग ऑफ कोकेन के तौर पर जाना जाता था।
दुनियाभर में तमाम तरह के एक्सपेरिमेंट होते रहते हैं। हालांकि, इनमें से कुछ के बारे में लोगों को पता होता है, जबकि कुछ ख़ुफ़िया रूप से किए जाते हैं। कुछ इसी तरह का एक एक्सपेरिमेंट 1940 के दशक में किया गया था, जिसके बारे में जानकर लोगों की रूह कांप जाती है। इस एक्सपेरिमेंट को 'रशियन स्लीप एक्सपेरिमेंट' के नाम से जाना जाता है। आपको बता दें कि इस एक्सपेरिमेंट के लिए जेल में बंद पांच कैदियों के साथ एक डील की गई थी। और उनसे कहा गया कि अगर वो इसका हिस्सा बनते हैं, तो एक्सपेरिमेंट खत्म होने के तुरंत बाद उन्हें छोड़ दिया जाएगा। इसके लिए उन्हें बताया गया कि 30 दिन तक उन्हें बिना सोए रहना होगा, जिसके लिए कैदी राजी हो गए। इसके बाद उन्हें एक एयर टाइट चैंबर में बंद कर दिया गया और उसमें एक गैस डाल दी गई, जिससे कैदियों को नींद न आए और वैज्ञानिक यह देख सकें कि इसका उनपर क्या प्रभाव पड़ता है। शुरुआत में तो सब ठीक था। सारे कैदी आराम से एक दूसरे से बातें करते थे। उनकी बातों को वैज्ञानिक रिकॉर्ड भी करते थे और साथ ही एक कांच के जरिए उनपर नजर भी रखते थे। करीब एक हफ्ते तक सारे कैदियों की हालत ठीक थी, लेकिन उसके बाद उनकी हालत बिगड़ने लगी। कैदियों ने धीरे-धीरे एक दूसरे से बात करना बंद कर दिया। वो बैठे-बैठे अपने आप ही कुछ-कुछ बोलते रहते थे। ऐसे ही 10 दिन बीत गए। फिर जैसे ही 11वां दिन आया, एक कैदी अचानक जोर-जोर से चिल्लाने लगा। वह इतनी तेज-तेज चिल्ला रहा था कि उसकी वोकल कार्ड फट गयी, और सबसे ज़्यादा चौंकाने वाली बात तो ये है के बाकि क़ैदियों को उसके चिल्लाने का कोई असर नहीं हुआ। मतलब के अगर आपके बगल में कोई इतनी तेज़ चिल्ला रहा हो जिसकी वजह से आपके वोकल कार्ड फट जाएँ और उसकी आवाज़ का आपको ज़रा भी पता न चले तो आपको कैसा लगेगा। कैदियों की हालत देखकर वैज्ञानिकों ने इस एक्सपेरिमेंट को रोकने का फैसला किया। उन्होंने 15वें दिन कैदियों वाले चैंबर में वो गैस नहीं डाली, जिसकी मदद से कैदियों को सोने से रोका जाता था। लेकिन इसका उल्टा असर हुआ। सारे कैदी अचानक से चिल्लाने लगे और कहने लगे कि हमें बाहर मत निकालो, हम बाहर नहीं आना चाहते। और इसी बीच चैंबर में  एक और कैदी की मौत भी हो गई। जब एक्सपेरिमेंट कर रहे वैज्ञानिकों ने कैदियों की हालत को देखा, तो उनके होश ही उड़ गए। उन्होंने देखा कि कैदियों के कई अंगों से मांस गायब हो गए थे, सिर्फ उनकी हड्डियां ही दिख रही थीं। उन्हें देखने पर ऐसा लग रहा था जैसे वो एक दूसरे का या अपना ही मांस खाने लगे थे। कैदियों की दिल दहला देने वाली हरकतें और उनकी हालत को देखकर वैज्ञानिकों ने सोचा कि उन्हें मार देना चाहिए। इसके लिए उन्होंने टीम के कमांडर से बात की, लेकिन कमांडर ने ऐसा करने से मना कर दिया और उसने कहा कि हमें एक्सपेरिमेंट को जारी रखना चाहिए। हालांकि, बाद में एक वैज्ञानिक ने ही उन कैदियों को मार डाला और एक्सपेरिमेंट से जुड़े सारे सबूत मिटा दिए। अब यह कहानी सच है या मनगढ़ंत, इसके बारे में कोई खास जानकारी नहीं है। लेकिन साल 2010 में क्रीपिपास्ता डॉट विकिया डॉट कॉम नाम की एक वेबसाइट ने इसे पोस्ट किया था। और यह सोशल मीडिया पर भी खूब वायरल हुई थी। कुछ लोग इस कहानी को सच मानते हैं, क्योंकि पहले औरदूसरे विश्वयुद्ध में जापान और चीन जैसे देशों में इंसानों पर कई खतरनाक प्रयोग किए गए थे। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए लगातार बातें कर रहे हैं और इसके लिए कई आवश्यक कदम भी उठाए। इसी बीच उन्होंने देश को ब्ल्यू इकनॉमी में आगे बढ़ाने का विचार रखा है। प्रधानमंत्री मोदी का ऐसा मानना है कि आने वाले समय में वही देश विश्व में मजबूत बनेगा, जिसकी ब्ल्यू इकनॉमी विकसित होगी। ब्ल्यू इकनॉमी शब्द बहुत पुराना नहीं है। आज से लगभग दशक भर पहले ही ये शब्द अस्तित्व में आया था। समुद्र के जरिए व्यापार को बढ़ावा देना ही ब्ल्यू इकनॉमी कहलाता है। इस शब्द की खोज बेल्जियन व्यापारी और लेखक गुंटेर पॉली ने की थी। भले ही ये शब्द नया नहीं है, लेकिन इस शब्द के पीछे जो अर्थ है, वो सैकड़ों सालों से इस्तेमाल किया जा रहा है। सदियों से व्यापारी समुद्र के जरिए एक देश से दूसरे देश जाकर अपना Business फैलाते हैं। ये प्रक्रिया उस समय से जारी है, जब ना हवाई जहाज की व्यवस्था थी और ना ही सड़क मार्ग से दुनिया जुड़ी थी। ऐसे स्थिति में व्यापार का एकमात्र और सबसे बढ़िया साधन समुद्री रास्ता ही था। समुद्री रास्तों के जरिए अर्थव्यवस्था को बढ़ाना ही ब्ल्यू इकनॉमी है। ब्ल्यू इकनॉमी के तहत सबसे पहले समुद्र आधारित बिजनेस मॉडल तैयार किया जाता है। इसके साथ ही संसाधनों को ठीक से इस्तेमाल करने और समुद्री कचरे से निपटने के डायनामिक मॉडल पर कम किया जाता है। फिलहाल पर्यावरण दुनिया में एक बड़ा मुद्दा है। ऐसे में ब्ल्यू इकोनॉमी को अपनाना इस नजरिये से भी बेहद फायदेमंद साबित हो सकता है। 


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