अमेरिका के पास ऐसे कौन से हथियार हैं जिनकी वजह से पूरी दुनिया उससे भयभीत रहती है?

अमेरिका के इस अदृश्य हथियार को समझने के लिए हम सबको 1944 में जाना पड़ेगा। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका विजेता बन के उभरा। युद्ध में उसके बाक़ी के ४ साथी देश भी विजेता थे लेकिन उनकी आर्थिक स्तिथि इतनी ख़राब हो चुकी थी की वो युद्ध के बाद अपनी शर्तें मनवाने में नाकामयाब थे। ब्रिटेन और फ़्रान्स को अपनी कई कोलोनियों को आज़ादी देनी पड़ी। रूस और चीन की आर्थिक स्तिथि भी वर्षों का युद्ध लड़कर काफ़ी ख़राब थी। जर्मनी और जापान तो हारे हुए थे। भारत जैसे कई और देश आज़ादी की राह देख रहे थे। ऐसे में अमेरिका एक आर्थिक और सैन्य महाशक्ति के रूप में उभरा। विश्व के सारे देश मिल कर भी उससे टक्कर लेने में असमर्थ थे और अमेरिका पूरे विश्व पर अपनी शर्तें थोप सकता था।

आइये अब जानते हैं की उस समय, 1944 में, अमेरिका ने ऐसी क्या शर्त रखी जिससे वो आज भी एक महाशक्ति है ?

द्वितीय विश्व युद्ध ख़त्म होने के बाद सभी देशों ने मिल कर संयुक्त राष्ट्र (United Nations) की स्थापना की। लेकिन अमेरिका ने इस बात का ख़याल रखा की यू एन कहीं उसकी शक्तियों को कम ना कर दे। इसलिए अमेरिका ने ऐसे प्रावधान रखे जिससे यू एन सिर्फ़ अमेरिका के इशारों पे काम करे और अमेरिकी हितो को सर्वोपरि रखे। युद्ध के आज इतने वर्षों बाद भी अमेरिका किसी भी देश के ऊपर यू एन द्वारा जब चाहे sanctions लगा सकता है। क्या कभी आपने देखा है की यू एन अमेरिका पे sanctions लगाये हों? नहीं ना। क्यूँकि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जिस कठपुतली (यू एन) की स्थापना अमेरिका ने की थी वो कठपुतली आज भी पूरे विश्व के व्यापार को कंट्रोल करती है।

दूसरा जो सबसे बड़ा खेल अमेरिका ने खेला वो था अमेरिकी डॉलर को वैश्विक मुद्रा बनाना। यू एन की स्थापना के बाद जब सभी देशों की मीटिंग में एक नयी वैश्विक मुद्रा पे चर्चा हुई तब अमेरिका ने ज़बरदस्ती अपनी मुद्रा यानी अमेरिकी डॉलर को वैश्विक मुद्रा बनाने पर ज़ोर दिया। उस समय के ज़्यादातर बड़े बड़े अर्थशास्त्रियों ने इसका विरोध भी किया था। मगर कोई भी देश उस समय अमेरिका का विरोध करने की स्तिथि में नहीं था। और यू एन भी उसकी कठपुतली था। तो अमेरिका ने अपना सबसे बड़ा अदृश्य हथियार सारी दुनिया के ऊपर छोड़ दिया। और ये हथियार आज 2019 में भी बढ़िया काम कर रहा है और अमेरिका को महाशक्ति बनाए हुए है।

अब थोड़ा समझते हैं की ये हथियार काम कैसे करता है। पहले तो ये समझिए कि अमेरिकी डॉलर के वैश्विक मुद्रा होने की वजह से जब आप विश्व में किसी भी देश से कोई भी वस्तु ख़रीदेंगे तो भुगतान अमेरिकी डॉलर में करना होगा। मान लीजिए भारत को आज कच्चा तेल ख़रीदना है साऊदी अरब से। तो सबसे पहले भारत को डॉलर चाहिए। वो कहा से आएँगे? तो पहले भारत को कोई ऐसे वस्तु विश्व में बेचनी पड़ेगी जिससे भारत डॉलर कमा सके। फिर उन कमाए हुए डॉलर से भारत कच्चा तेल ख़रीद सकता है। ये कुछ उसी प्रकार है जैसे एक आम आदमी पहले मेहनत करके पैसे कमाता है और फिर पैसे से अपनी ज़रूरत का सामान ख़रीदता है। अमेरिका को छोड़ कर आज विश्व के सभी देश वो आम आदमी हैं जो पहले निर्यात से डॉलर कमाते हैं फिर उससे अपनी ज़रूरत का सामान ख़रीदते हैं।

लेकिन अमेरिका आम आदमी नहीं है। मान लीजिए अमेरिका को भी साऊदी से कच्चा तेल ख़रीदना है। तो उसे क्या करना होगा? अजी बहुत आसान है, बस डॉलर छापना है और साऊदी को दे देना है। मिल गया कच्चा तेल। महँगी गाड़ियाँ ख़रीदनी है अजी कोई दिक्कत नहीं, बस डॉलर छापो और निर्माता देश से ख़रीदलो जो चाहिए।

मैं बचपन में सोचता था काश मेरे पास नोट छापने की मशीन होती तो में जो चाहे ख़रीद लेता। बड़ा होके पता चला की यही तो अमेरिका की सूपर पॉवर है।

ये व्यवस्था अमेरिका को अनुचित लाभ प्रदान करती है। अमेरिका आर्थिक रूप से कभी पिछड़ नहीं सकता। उसका आर्थिक महा शक्ति का तमग़ा कभी छिन नहीं सकता। और भी कई नकारात्मक पहलू हैं इसके जैसे की पूरे विश्व में महँगाई का बढ़ना।

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