फिर भी दुनिया उस इंसान को भूल गई…. JONAS EDWARD SALK IN HINDI


क्या पता कल को मुझे कैंसर या कोई एड्स जैसी बीमारी हो जाये तो? क्या आप भी ऐसा सोचते है? लगभग सभी के दिमांग में ऐसे ख्याल तो आते ही होंगे, क्योकि हम डरते है यह दुनिया के वो खतरनाक रोग है जिनका कोई इलाज नहीं है। अगर यह एक बार हो गया तो हम सब जानते है जीने के लिए हमारे पास कुछ ही दिन है वो भी दर्द और पीड़ा के साथ।


कुछ सालो पहले ऐसा ही एक रोग आया था। जिसमे लोगों के पैर सूज जाते थे। और इतने मोटे हो जाते के रोगी अपनी जगह से हिल ही नहीं सकता था। बीसवीं सदी के मध्य में इस रोग ने सबसे पहले अमरीका को चपेट में लिया। और पुरे अमरीका में महामारी घोसित कर दि गयी। उसके बाद ये बढ़ता हुआ जर्मनी, डेनमार्क, और बेल्जियम जैसे देशो में फैलने लगा और सबसे ज्यादा परेशानी ये थी के ये रोग ज्यादातर बच्चो को ही अपनी चपेट में ले रहा था।


1952 में उस रोग ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए, एक रिपोर्ट के मुताबित कुछ 58,000 केसेस सामने आए थे, और कुछ 3145 लोग अपनी जान गवा चुके थे। इस खबर ने पूरी दुनिया में खलबली मचा दी थी, और ऐसा लग रहा था जैसे प्लेग रोग ने पुरे यूरोप का सफाया कर दिया हो। कुछ वैसे ही यह रोग दुनिया में फ़ैल रहा था।


अब बात करते है उनकी जिनको दुनिया आज भूल चुकी है, उनका नाम है, जोन्स एडवर्ड साल्क।
जोन्स एडवर्ड जिस स्कूल में पढ़ते थे वहां के सभी छात्र कहते थे कि जोन्स जिस किताब पर हाथ रखता था। उस किताब को वो पढ़ लेता था। बिलकुल ऐसे ही जोन्स ने ध्यान और लगन से अपनी पढाई की, और उन्हें अमरीका की एक अच्छी सी यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर की नोकरी मिल गई। वहां पर वे बायोलॉजी Subject पढ़ाते थे। और साथ में कई प्रकार के जीवाणुओ पर रीसर्च भी किया करते थे।


इस रोग ने जब अमेरिका पे धाबा बोला तभी से जोन्स ने उस रोग को नियंत्रण में लाने के लिए दवाई खोजनी शुरू कर दि। रोग फैलता जा रहा था और कोई भी इसकी दवाई खोजने में सफल नहीं हुआ, पर 1954 में जोन्स ने एक बंदर पर परिक्षण किया और सफल रहे, उन्हें उस रोग की ठीक ठाक दवाई मिल गई थी। जिस रोग को आज हम पोलियो के नाम से  जानते है।


अब जोन्स की इंसानियत को परखते है, अगर वो चाहते तो उस दवाई को बेचकर वो करोडो रुपए कमा सकते थे पर उन्होंने उस दवाई का एक रूपया भी नहीं लिया और पूरी दुनिया को मुफ्त में बाटने लगे क्योकि दुनिया को उस वक्त सही मायने में उस दवाई की जरूरत थी फिर चाहे वो मुफ्त में मिले या पैसे देकर और जोन्स एडवर्ड ने वो काम कर दिखाया।


बहुत ही जल्द उस दवाई को उन देशो में पहुचाया गया जहा पर रोग फ़ैल रहा था। उन देशो में कनाडा, स्वीडन, डेनमार्क, नीदरलैंड, स्विट्जरलैंड, नॉर्वे, जर्मनी और बेल्जियम जैसे देश शामिल थे। कुछ 2,20,000 लोगो ने उस काम में साथ दिया और 18,00,000 बच्चो तक उस दवाई को पहुचाया गया। फिर 12 अप्रैल, 1955 में न्यूज़ आई की पोलियो की दवाई काम कर गई तब उस दिन को लगभग पुरे विष्व में छुट्टी जैसा माहौल था और पूरी दुनिया ने चैन की सांच ली।


आज अगर आप इक्कीसवीं सदी के बच्चे या युवा है और अपने पैरो पर दौड़ रहे है तो आपको "जोन्स एडवर्ड साल्क" को धन्यवाद बोलना चाहिए जो इस वक्त इस दुनिया में नहीं रहे।


 तो दोस्तों कैसी लगी ये वीडियो मुझे comments करके ज़रूर बताइयेगा। उम्मीद है इस Video से आपको कुछ सिखने को मिला होगा। 

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