रहस्मयी दुनिया

भूतिया होटल्स, अगर आप कहीं घूमने जाने का कोई प्लान बना रहे हों तो ये जानकारी आपके लिए है, हम अपनी ट्रिप को मजेदार बनाने के लिए क्या कुछ नहीं करते हैं। लोकेशन के चयन के बाद जो पहला काम होता है वो होटल बुकिंग का ही होता है। अपने अनुभव को यादगार बनाने के लिए हम अच्छे से अच्छा होटल ढूंढते हैं। भारत में अंग्रेजी शासन के दौरान कई खूबसूरत भवन-इमारतों का निर्माण करवाया गया था, जिसका इस्तेमाल ब्रिटिश सरकार के आला अफसरों द्वारा किया जाता था, हालांकि भारत कई सालों पहले अंग्रेजी हुकूमत की कैद से मुक्त हो चुका है लेकिन उनके द्वारा बनाए गए वे आलीशान भवन आज भी मौजूद हैं। ऐतिहासिक धरोहर के रूप में ये भवन अब पर केंद्र-राज्य सरकार द्वारा संरक्षित हैं। जिनमें से बहुतों का इस्तेमाल पर्यटन के लिहाज से किया जाता है। कुछ ऐसा ही खूबसूरत होटल के बारे में आज हम जानेंगे

नंबर एक 'मॉर्गन हाउस'।

ये  खूबसूरत होटल पश्चिम बंगाल के कालिंपोंग में स्थित है, मॉर्गन हाउस पश्चिम बंगाल के एक छोटे से हिल स्टेशन कालिंपोंग में स्थित है। जो जॉर्ज मॉर्गन द्वारा सन् 1930 में बनवाया गया था। जॉर्ज मॉर्गन और उनकी पत्नी की मौत के बाद यह भवन ट्रस्टी के देखरेख में चला गया क्योंकि मॉर्गन का कोई वारिस नहीं था। जिसकी वर्तमान में देख-रेख पश्चिम बंगाल के पर्यटन विभाग द्वारा की जाती है। यह प्रॉपर्टी कभी सिंगमारी टूरिस्ट लॉज या डरपिन टूरिस्ट लॉज के नाम से भी जानी जाती थी। मॉर्गन एक खूबसूरत ऐतिहासिक भवन है, जो डरपिन पहाड़ पर लगभग 16 एकड़ के क्षेत्र में फैला है। कैलिमपोंग यहां से मात्र तीन किमी की दूरी पर है। जॉर्ज मॉर्गन की पत्नी(लेडी मॉर्गन) की रहस्यमयी मौत के बाद। जिसके बाद मॉर्गन की भी मृत्यु हो गई। इस बात का अबतक कोई सटीक प्रमाण नहीं मिलता है के लेडी मॉर्गन की मौत कैसे हुई थी। माना जाता है कि आज भी लेडी मॉर्गन की आत्मा इस भवन में भटकती है। यहां ठहरने आए बहुत से सैलानी इस बात की शिकायत कर चुके हैं कि यहां रात में अजीबोगरीब आवाजें और डरावने अनुभव होते हैं। अगर आप थोड़ा रहस्य के साथ रोमांच का आनंद लेना चाहते हैं तो यहां एक रात जरूर रूकें।

नंबर दो 'ब्रिज राज भवन'।

ब्रिज राज भवन राजस्थान के कोटा शहर में स्थित है। इस होटल का इतिहास भी भारत में अंग्रेजों से जुड़ा हुआ है। इस भवन में कभी मेजर चार्ल्स बर्टन नाम का एक ब्रिटिश अधिकारी रहा करता था। कहा जाता है कि ब्रिज भवन में एक अंग्रेज की आत्मा आज भी वास करती है। वो अंग्रेज जिसे भवन के सेंट्रल हॉल में उसके दो जुड़वां बेटों के साथ मार दिया गया था।यह भवन 180 साल पुराना है। इसे हेरिटेज इमारत के रूप में घोष‍ित कर दिया गया है। बात 1857 की है, जब देश भर में अंग्रेजों के ख‍िलाफ जंग छिड़ी हुई थी। चंबल नदी के किनारे स्थ‍ित ब्रिज भवन का निर्माण को ब्रिटिश रेजीडेंसी के रूप में किया गया था। ब्रिटिश राज में हिंदू-मुसलमानों के बीच अंग्रेजों ने झगड़ा करवा दिया। मंदिरों के पास गो मांस फेंक देते और मस्ज‍िदों के पास सुअर का मांस। इस वजह से दोनों धर्मों के बीच जंग छिड़ गई। 1829 में सती प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया गया। बाद में जब आम जनता को अंग्रेजों की चाल समझ में आ गई, तब दोनों समुदायों के लोग एक जुट हो गये और एक संगठन बना लिया।1857 में अफवाह फैल गई कि भारतीय सिपाहियों को दी जाने वाली बंदूकों की गोलियों को बनाने में पोर्क और बीफ का इस्तेमाल किया जाता है। हिंदुओं में गोमांस और मुसलमानों में पोर्क पूरी तरह प्रतिबंध‍ित है। लिहाजा सिपाहियों ने विद्रोह कर दिया। इसी विद्रोह के दौरान मेजर चार्ल्स बर्टन और उसके दो जुड़वां बेटे कोटा रेजीडेंसी में रहते थे। सिपाहियों ने विद्रोह की जंग छेड़ दी और ब्रिज भवन को घेर लिया। उस वक्त मेजर बर्टन की सुरक्षा में महज एक ऊंट-चालक था। सिपाहियों के गुस्से को देख मेजर के दोनों बेटे ऊपर के माले पर चले गये और चिल्ला-चिल्ला कर मदद मांगने लगे। जबकि मेजर को नीचे सेंट्रल हॉल में सिपाहियों ने पकड़ लिया और वहीं पर चाकू से गोद कर हत्या कर दी। पिता की मौत को देख दोनों बेटे ऊपर की ओर भागे और अंत में जब उन्हें कुछ नहीं मिला तो छत से कूद गये। ऊंचाई से गिरने के तुरंत बाद उन दोनों को भी मार डाला गया। यह मंजर बेहद खौफनाक था, क्योंकि बाप के किये की सजा बेटों को भुगतनी पड़ी थी। अचानक हुई मौत के बाद बर्टन की आत्मा को शायद शांति नहीं मिली और लोग कहते हैं कि उसकी आत्मा आज भी इसी ब्रिज भवन में निवास करती है।
इस बात की पुष्ट‍ि 1980 में कोटा की पूर्व महारानी ने ब्रिटेन के पत्रकार को दिये गये इंटरव्यू में कहा था कि उन्होंने कई बार अपने ड्रॉइंग रूम (सेंट्रल हॉल) में मेजर के भूत को देखा है। उन्होंने यहां तक बताया कि उन्होंने एक बूढ़े आदमी के अक्स को देखा, जिसके हाथ में एक डंडा था। हालांकि उन्होंने बताया कि उस आत्मा ने उन्हें कभी कोई क्षति नहीं पहुंचायी। ब्रिज भवन जो अब कोटा स्टेट गेस्ट हाउस बन गया है, यहां काम करने वाले लोग बताते हैं कि अक्सर छत व बागीचे में किसी के चलने की आवाजें आती हैं। लोग बताते हैं कि अगर रात के अंधेरे में कोई छत पर या बागीचे में जाता है, तो उसे थप्पड़ पड़ जाता है। लोगों का मानना है कि यह थप्पड़ कोई और नहीं मेजर का भूत ही मारता है।

नंबर तीन 'सवॉय होटल'।

उत्तराखंड के मसूरी स्थित सवॉय होटल भारत के ऐतिहासिक होटल्स में एक है, जिसका निर्माण 1902 में करवाया गया था। अपनी खूबसूरती के साथ-साथ ये होटल भारत के चुनिंदा भूतिया होटलों में भी गिना जाता है। सवा सौ साल पुरानी यह इमारत आज मसूरी की तारीख का हिस्‍सा है। जानकारों का मानना है कि यहां किसी ब्रिटिश लेडी गारनेट ऑरमेकी की आत्मा भटकती है।  आज का सवॉय दरअसल 19वीं शताब्‍दी का मसूरी स्‍कूल था जिसका नाम बाद में बदलकर मेडॉक स्‍कूल रख दिया गया। स्‍कूल की जर्जर हो चुकी इस इमारत को 1890 में इंग्‍लैंड से आए लिंकन ने खरीदा था। और फिर 12 साल की मेह‍नत के बाद वर्ष 1902 में इसे लंदन के मशहूर होटल सवॉय के तर्ज पर खड़ा किया। 121 कमरे, हिंदुस्‍तान का सबसे बड़ा बॉल रूम, आलिशान पार्क, गार्डन, टेनिस कोर्ट, रेसकोर्स और बिलयर्ड रूम यहां तक की होटल का अपना अलग पोस्‍ट ऑफिस अंग्रेजों के लिए एक ख्‍वाब के सच होने जैसा था। एक दौर था जब इस होटल की शाम गुलजार रहा करती थीं। तभी कुछ ऐसा हुआ जिसने एक झटके में सबकुछ बदल कर रख दिया। होटल में एक ब्रिटिश महिला का खून हो गया। पूरा मसूरी सन्‍न थी। अंग्रजों के बीच खलबली मची हुई थी। ऐसा इसलिए नहीं कि उस दौर में कत्‍ल नहीं होते थे बल्कि इसलिए क्‍योंकि कत्‍ल का तरीका बिल्‍कुल अलग था। लेडी गारनेट ऑरमे की लाश मौत के कई दिनों बाद होटल के कमरे से बरामद हुई थी। बावजूद इसके लाश एक दम ताजा मालूम पड़ रही थी। पुलिस की डायरी में यह हत्‍या दब गई और लोगों को पता भी नहीं चल पाया कि लेडी गारनेट ऑरमे की हत्‍या कैसे हुई थी।
इतना ही नहीं उनकी लाश का क्‍या हुआ यह भी रहस्‍य रह गया। कत्‍ल के बाद सवॉय की कहानी और पेंचीदा हो गई। लोगों को यकीन हो चुका था कि गारनेट ऑरमे का भूत होटल पर कब्‍जा कर चुका है। क्‍योंकि इस अजीबो गरीब मौत के बाद दो और लोगों (डॉक्‍टर जिसने ऑरमे की लाश का पोस्‍टमार्टम किया और एक पेंटर जो ऑरमे के लिए पेटिंग किया करता था) की रहस्‍यमय मौत हुई। इसके बाद सवॉय के दरो-दीवार में मनहूसियत सी बस गई। एक पुरानी कहानी के मुताबिक सवॉय के मालिक ने इस इमारत को अपनी बीबी के दौलत से खरीदी थी। वो सिलसिलेवार कातिल था जिसने बाद में जायदाद की खातिर बीबी की भी हत्‍या कर दी। रहस्‍यमय मौतों के के बावजूद भी सवॉय की कशिश नए मालिकों को खीचती रही। इतिहास की मानें तो दूसरे विश्‍व युद्ध के वक्‍त सवॉय अमेरिका और ब्रिटीश फौजियों का ठिकाना था। इस होटल के इतिहास में ये वो दौर था जब इन दीवार के पीछे की बातें वहीं दफ्न कर दी जाती थी। जो बाहर ले जाता उसका अंजाम मौत होता था। सबकुछ खामोशी से होता रहा। सवॉय से आती कभी किसी ने कोई चींख नहीं सुनी और लोगों का रहस्‍मय ढंग से लापता होना जारी रहा। होटल में हुई कत्‍ल की इन तमाम वारदातों ने इस इमारत की किस्‍मत हमेशा के लिए बदल दिया। यूं तो वारदात की शुरुआत हुई थी कत्‍ल से पर बात आगे बढ़ते बढ़ते पहुंच गई भटकती हुई रुहों पर और फिर खत्‍म हुई होटल की बर्बादी पर। इसके बाद भी इसे खरीदा तो कई लोगों ने पर आबाद कोई नहीं कर पाया। कहते हैं वर्षों आबाद रहने वाली इमारतों को विरानी की आदत एकदम से नहीं पड़ जाती लिहाजा देखने वालों को यहां आज भी हलचल दिख जाती है। आज यह होटल पूरी तरह बंद है। माना जाता है कि तब से ऑरमे की आत्‍मा इस होटल में अपने गुनहगार की तलाश कर रही है। इस स्थान को सीरियल किलिंग से भी जोड़कर देखा जाता है लेकिन अधिकांश लोगों का मानना है कि इन हत्याओं के पीछे उसी लेडी ऑरमे की रूह का हाथ है।

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