जब एक झटके ने ले ली 28,000 लोगों की जान || When a shock killed 28,000 people


1905 में 4 अप्रैल की सुबह भूकंप ने ऐसी तबाही बरपाई थी कि चारों ओर सिर्फ तबाही के निशान दिख रहे थे। कांगड़ा से लेकर लाहौर तक आई इस त्रासदी में 28 हजार लोगों की जान चली गई थी। ह‍िमाचल प्रदेश के ज‍िला कांगड़ा में आज से ठीक 115 साल पहले एक ऐसा भूकंप आया था। ज‍िसके नुकसान को सुनकर आज भी यहां के लोग स‍िहर उठते हैं।

1905 में 4 अप्रैल की सुबह हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में भूकंप ने ऐसी तबाही बरपाई थी, के चारों ओर सिर्फ तबाही के निशान दिख रहे थे। इस त्रासदी में अकेले कांगड़ा में 27 हजार से ज़्यादा लोगों की जाने चली गई थीं। 

महज चंद सेकेंड की कंपन ने ही इस क्षेत्र के करीब 27 हजार लोगों को मौत की नींद सुला दी, और 56 हज़ार से ज़्यादा जानवर मारे गए। कई ऐत‍िहास‍िक भवनों का नामोन‍िशां म‍िट गया। मौत के सन्‍नाटे और अनहोनी की आशंका के अलावा यहां कुछ नहीं बचा था। जहां बेहतर भव‍िष्‍य की उम्‍मीदे जगमगाती थी वहां उदासी में लिपटी तबाही ही तबाही नजर आ रही थी। एक भी मकान ऐसा नहीं बचा जहां दोबारा ज‍िंदगी शुरू करने की गुजाइंश की जा सके। यहां पहली बार 7.8 मैग्‍नीच्‍यूड का भूकंप का झटका महसूस क‍िया गया था। 

4 अप्रैल 1905 को सुबह अभी यहां के लोग ढंग से जागे भी नहीं थे क‍ि सुबह 6 बजकर 19 म‍िनट पर भूकंप के दो झटकों ने कांगड़ा को बुरी तरह से ह‍िला डाला। उस समय यहां की आबादी भी कम थी, उस वक़्त आये इस भूकंप ने 19 हजार 800 लोगों को मौत के घाट उतर दिया। एक लाख से ज़्यादा इमारतें तबाह हो गयीं। 

कई ऐति‍हास‍िक इमारतें जमींदोंज हो गईं, भूकंप से कई जगह भूस्खलन हुए, चट्टानें गिर गईं। धर्मशाला की सारी की सारी इमारतें ज़मीदोज़ हो गईं। इस भूकंप ने कुल्लू-मनाली से लेकर शिमला, सिरमौर तक अपनी विनाशलीला दिखाई थी। इस भूकंप में यहां के पुराने मंद‍िर भी ध्‍वस्‍त हो गए थे, सिर्फ बैजनाथ श‍िव मंद‍िर को अंश‍िक रूप से नुकसान पहुंचा था। 

उस वक्त  कांगड़ा जालंधर डिवीजन का भाग था। यहां हुई तबाही को लेकर तुरंत लाहौर से मदद भेजी गई, वैज्ञानिकों का कहना है के अगर प्रकृति ने एक बार फिर तबाही बरपाई, तो इस बार मरने वालों की संख्या हजारों में नहीं, लाखों में होगी।


छोटा सा खूबसूरत चीनी मिट्टी का बना मिंग कटोरा, ये कटोरा जब सूथबी हाऊस में नीलामी के लिए लाया गया, तो कला के एक पारखी ने इसे 180 लाख डॉलर, यानि क़रीब 110 करोड़ रुपये में खरीदा, चीनी मिट्टी से बना ये मिंग कटोरा इतना क़ीमती इसलिए है क्योंकि ये 15वीं सदी के चांगक्वा काल का है. 15वीं सदी का ये दौर अपनी कला और कारीगरी के लिए दुनिया भर में मशहूर था. कहा जाता है कि उस दौर के बादशाह क्वांग ने इसका इस्तेमाल किया था. सूथबी के ज़रिये नीलाम किया गया ये अब तक का दूसरा सबसे महंगा मिंग कटोरा है.

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