इतिहास के किस्से सुनते वक्त आप ने अक्सर एक बात ज़रूर सुनी होगी के ऐसा युद्ध हुआ कि धरती खून से लाल हो गई.
सदियों तक उस मिट्टी में जो भी फसलें और पेड़ पौधे उगते थे वे भी लाल रंग के ही होते थे.
लेकिन क्या कभी आपने सुना है कि किसी युद्ध में इतना खून बहा के धरती खून से लाल नहीं बल्के काली हो गई और वहां उगने वाले पेड़ पौधे भी हरे रंग के बजाये काले हो गए.
बहुत ही कम लोगों को पता होगा कि पानीपत में जिस स्थान पर तीसरा अफगान मराठा युद्ध लड़ा गया था उस स्थान पर इतना भीषण रक्तपात हुआ कि धरती खून से लाल नहीं बल्के काली हो गई थी.
पानीनत का म्यूज़ियम इस बात का गवाह है, यहां पर एक स्थान है काला आम जिसे हम काला अंब भी कहते हैं.
यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि इस स्थान पर एक ऐसा आम का पेड़ था, जिसकी डालियों को काटने पर उनसे खून के रंग निकलते थे. साथ ही एक रोचक बात यह भी है के इस पेड़ पे जो फ़ल लगते थे उनको खाने के लिए कोई जल्दी तैयार नहीं होता था. क्योंकि आमों को काटने पर उनमें से जो रस निकलता था, उसका रंग रक्त की तरह लाल होता था.
सालों बाद जब यह पेड़ सूख गया तो इसको सूखने पर इसे कवि पंडित सुगन चंद रईस ने खरीद लिया. बताया जता है कि सुगन चंद ने इस पेड़ की लकड़ी से खूबसूरत दरवाजे बनवाए. उनमें से एक दरवाज़ा आज भी पानीपत म्यूज़ियम में रखा है. इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है के यहाँ तीन युद्ध लड़े गए. पहला युद्ध सन् 1526 में बाबर और इब्राहिम लोदी के बीच हुआ था. और दूसरा युद्ध सन् 1556 में मुगल बादशाह और हेमु के बीच लड़ा गया.
और तीसरा युद्ध जो इतिहास में सबसे अधिक जाना जाता है वो सन् 1761 में लड़ा गया. यह युद्ध मराठों और अफगानों के बीच लड़ा गया था. मराठों की तरफ से सदाशिवराव भाऊ और अफगानों की ओर से अहमदशाह अब्दाली ने नेतृत्व किया था. इस युद्ध में करीब 70 हज़ार मराठा सैनिकों की मौत हो गई थी. कहते हैं के युद्ध में बंदी बनाए करीब 40 हार मराठा सैनिकों का भी कत्ल कर दिया गया था.
और पानीपत में जिस जगह पे रक्तपात हुआ वहां कई पेड़ थे. जिनमें एक आम का पेड़ भी था. भीषण युद्ध के कारण हुए रक्तपात से इस जगह की मिट्टी लाल हो गई, जिसका असर इस आम के पेड़ पर भी पड़ा.
रक्त के कारण आम के पेड़ का रंग काला हो गया और इसके फल भी काले रंग के होते थे. इस कारण इस स्थान को कला अंब यानी काला आम के नाम से भी जाना जाने लगा.
सरकार ने उस स्थान एक स्मारक बनाया है, जिसे काला अंब कहा जाता है.
सदियों तक उस मिट्टी में जो भी फसलें और पेड़ पौधे उगते थे वे भी लाल रंग के ही होते थे.
लेकिन क्या कभी आपने सुना है कि किसी युद्ध में इतना खून बहा के धरती खून से लाल नहीं बल्के काली हो गई और वहां उगने वाले पेड़ पौधे भी हरे रंग के बजाये काले हो गए.
बहुत ही कम लोगों को पता होगा कि पानीपत में जिस स्थान पर तीसरा अफगान मराठा युद्ध लड़ा गया था उस स्थान पर इतना भीषण रक्तपात हुआ कि धरती खून से लाल नहीं बल्के काली हो गई थी.
पानीनत का म्यूज़ियम इस बात का गवाह है, यहां पर एक स्थान है काला आम जिसे हम काला अंब भी कहते हैं.
यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि इस स्थान पर एक ऐसा आम का पेड़ था, जिसकी डालियों को काटने पर उनसे खून के रंग निकलते थे. साथ ही एक रोचक बात यह भी है के इस पेड़ पे जो फ़ल लगते थे उनको खाने के लिए कोई जल्दी तैयार नहीं होता था. क्योंकि आमों को काटने पर उनमें से जो रस निकलता था, उसका रंग रक्त की तरह लाल होता था.
सालों बाद जब यह पेड़ सूख गया तो इसको सूखने पर इसे कवि पंडित सुगन चंद रईस ने खरीद लिया. बताया जता है कि सुगन चंद ने इस पेड़ की लकड़ी से खूबसूरत दरवाजे बनवाए. उनमें से एक दरवाज़ा आज भी पानीपत म्यूज़ियम में रखा है. इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है के यहाँ तीन युद्ध लड़े गए. पहला युद्ध सन् 1526 में बाबर और इब्राहिम लोदी के बीच हुआ था. और दूसरा युद्ध सन् 1556 में मुगल बादशाह और हेमु के बीच लड़ा गया.
और तीसरा युद्ध जो इतिहास में सबसे अधिक जाना जाता है वो सन् 1761 में लड़ा गया. यह युद्ध मराठों और अफगानों के बीच लड़ा गया था. मराठों की तरफ से सदाशिवराव भाऊ और अफगानों की ओर से अहमदशाह अब्दाली ने नेतृत्व किया था. इस युद्ध में करीब 70 हज़ार मराठा सैनिकों की मौत हो गई थी. कहते हैं के युद्ध में बंदी बनाए करीब 40 हार मराठा सैनिकों का भी कत्ल कर दिया गया था.
और पानीपत में जिस जगह पे रक्तपात हुआ वहां कई पेड़ थे. जिनमें एक आम का पेड़ भी था. भीषण युद्ध के कारण हुए रक्तपात से इस जगह की मिट्टी लाल हो गई, जिसका असर इस आम के पेड़ पर भी पड़ा.
रक्त के कारण आम के पेड़ का रंग काला हो गया और इसके फल भी काले रंग के होते थे. इस कारण इस स्थान को कला अंब यानी काला आम के नाम से भी जाना जाने लगा.
सरकार ने उस स्थान एक स्मारक बनाया है, जिसे काला अंब कहा जाता है.
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